बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल
अध्याय - 6
ग्रामीण अधिवास
(Rural Settlement)
कार्यों की प्रमुखता के आधार पर अधिवासों के दो प्रधान वर्ग माने जाते हैं— ग्रामीण अधिवास एवं नगरीय अधिवास। ग्रामीण अधिवासों में कृषि, पशुपालन, मत्स्य आदि प्राथमिक कार्यों की प्रमुखता होती है। ग्रामीण अधिवासों को ग्राम या गाँव कहते हैं। ग्रामीण अधिवास नगरीय अधिवासों की तुलना में लघु आकार के तथा सरल संरचना वाले होते हैं। आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी ग्रामीण अधिवास नगरों की अपेक्षा पिछड़े हुए होते हैं। इसीलिए नगरीकरण को विकास का प्रतीक माना जाता है। वर्तमान काल में विकसित देशों की अधिकांश जनसंख्या नगरों में निवास करती हैं और ग्रामीण जनसंख्या का अनुपात अल्प है। इसके विपरीत पिछड़े हुए तथा विकासशील देशों में अधिकांश जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है तथा मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन आदि प्राथमिक कार्यों से जीविका प्राप्त करती है। इसी प्रकार अनेक मामलों में ग्रामीण अधिवास नगरीय अधिवासों से भिन्न होते हैं।
ग्रामीण अधिवासों को उनकी स्थिति, आकारिकी, समूहन तथा गृह अन्तरण आदि के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभक्त किया जा सकता है। अधिवासों का सर्वाधिक मान्य, प्रचलित तथा चिरसम्मत वर्गीकरण गृहों में समूहन, बसाव प्रतिरूप तथा गृहों के बीच की दूरी आदि के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार ग्रामीण अधिवासों को मुख्यतः दो वर्गों में विभक्त किया जाता है— एकाकी या प्रकीर्ण अधिवास तथा पुंजित या सघन अधिवास।
अत्यन्त लघु आकार वाले ग्रामीण अधिवास जिनमें गृहों की संख्या बहुत सीमित होती है तथा वे दूर-दूर बिखरे हुए पाये जाते हैं, प्रकीर्ण या बिखरे हुए अधिवास कहलाते हैं। कही-कहीं एकाकी गृह ही अधिवास का प्रतिनिधित्व करते हैं। बड़े-बड़े कृषि फार्मों पर बनाये गये कृषि गृह या वास गृह भी प्रकीर्ण अधिवास के उदाहरण हैं। सघन अधिवास के अन्तर्गत उन ग्रामीण अधिवासों को सम्मिलित किया जाता है जो पास-पास स्थित गृहों के समूह होते हैं तथा जिनका आकार प्रकीर्ण अधिवासों की तुलना में बड़ा होता है।
ग्रामीण अधिवासों को ग्राम या गाँव कहा जाता है।
ग्रामीण अधिवास नगरीय अधिवासों की तुलना में लघु आकार के तथा सरल संरचना वाले होते हैं।
आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से भी ग्रामीण अधिवास नगरों की अपेक्षा पिछड़े हुए होते हैं। अत्यन्त लघु आकार वाले ग्रामीण अधिवास प्रकीर्ण अधिवास कहलाते हैं।
बिखरे हुए अधिवासी को एकाकी अधिवास भी कहा जाता है।
प्रकीर्ण अधिवासों की प्रमुख विशेषता उनका लघु आकार, एक दूसरे से दूर दूर स्थित होना तथा एकाकीपन है।
प्रकीर्ण अधिवासों के विकास के लिए अनेक प्राकृतिक तथा मानवीय कारक उत्तरदायी होते हैं।
प्रकीर्ण अधिवासों की प्रवृत्ति अपकेन्द्री होती है।
अधिवासों के विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया में गृहों के संकेन्द्रण के स्थान पर लघु अधिवासों की उत्पत्ति होती है।
प्रकीर्ण अधिवासों के विकास में प्राकृतिक दशाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है।
ग्रामीण अधिवासों को प्रोत्साहित करने वाले कारकों में स्थलाकृति के अतिरिक्त बाढ़ग्रस्त क्षेत्र, दलदल, वन आदि भी महत्वपूर्ण है।
उत्तर प्रदेश के भाबर तथा तराई क्षेत्र में भी प्रकीर्ण अधिवास मिलते हैं।
यूरोप के इटली, फ्रांस, स्विटजरलैण्ड, युगोस्लाविया आदि देशों के पर्वतीय क्षेत्रों में प्रकीर्ण अधिवास पाये जाते हैं।
रेतीली, क्षारीय तथा अनुपजाऊ भूमियों तथा जंगली प्रदेशों में सामान्यतः लघु अधिवास ही पनपते हैं। -
विश्व के विकसित तथा विकासशील दोनों प्रकार के देशों में प्रकीर्ण अधिवास पाये जाते हैं। - जिन प्रदेशों में जीविका के लिए आर्थिक संसाधनों का अभाव पाया जाता है वहाँ प्रकीर्ण
अधिवास पाये जाते हैं।
जिन भूभागों में आक्रमणकारियों द्वारा मनुष्य को खतरा बना रहता है वहाँ प्रकीर्ण अधिवासों का विकास कम होता है।
सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का भी अधिवासों के वितरण पर प्रभाव पाया जाता है।
भूस्वामित्व एवं सामाजिक संगठन का प्रभाव अधिवासों के आकार तथा प्रकृति पर देखा जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में चकबन्दी का कार्य प्रारम्भ हुआ।
चकबन्दी के परिणामस्वरूप किसानों के छोटे-छोटे खेत एकत्रित करके बड़े आकार के बना दिये गये।
इस प्रकार उत्तरी मैदान में चकबन्दी ने प्रकीर्ण अधिवासों को प्रोत्साहित किया है। प्रकीर्ण अधिवासों के विकास के लिए अधिकतर आर्थिक कारक ही प्रमुख होते हैं। प्रकीर्ण प्रकार के ग्रामीण अधिवास प्रायः सभी महाद्वीपों में पाये जाते हैं।
यूरोप में कृषि प्रदेशों में वासगृह के रूप में तथा कई, पहाड़ी भागों में एकाकी गृह के रूप में प्रकीर्ण अधिवास पाये जाते हैं।
दक्षिण यूरोप में समतल तथा विस्तृत उपजाऊ भूमि के अभाव में बिखरे हुए अधिवास ही पाये जाते हैं।
आल्पस, पेरिनीज, बाल्कन आदि पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे-छोटे, प्रकीर्ण प्रकार के अधिवासों की ही बहुलता पायी जाती है।
फ्रांस के मध्यवर्ती पठार, पुर्तगाल के द० भाग, स्विट्जरलैण्ड के पहाड़ी भागों में प्रकीर्ण अधिवास ही पाये जाते हैं।
एशिया के दक्षिणी, द० पूर्वी तथा मध्यवर्ती भागों में अधिकांशतः प्रकीर्ण अधिवास ही पाये जाते हैं।
प्रकीर्ण अधिवास आर्थिक दृष्टि से लाभदायक होते हैं।
सीमित भूमि तथा अभावग्रस्त क्षेत्रों में प्रकीर्ण अधिवास ही लाभदायक होता है।
प्रकीर्ण अधिवास सामाजिक दृष्टि से निराशाजनक होते हैं।
प्रकीर्ण अधिवासों में सामुदायिक सहयोग का अभाव पाया जाता है।
सुरक्षा की दृष्टि से भी प्रकीर्ण अधिवास दोषपूर्ण होते हैं।
प्रकीर्ण अधिवासों में सभी कार्यों के लिए व्यक्तिगत व्यवस्था करनी पड़ती है जो सामाजिक- आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं होती है।
सघन अधिवास के तहत् उन ग्रामीण अधिवासों को सम्मिलित किया जाता है जो पास-पास स्थित कई गृहों के समूह होते हैं।
एकत्रित अधिवास को ही ग्राम या गांव कहा जाता है।
ग्रामों में कृषक, पशुपालक, मछुआरे, खनिज आदि रहते हैं जो प्राथमिक कार्यों में संलग्न रहते हैं।
एकत्रित अधिवास स्थायी कृषि अवस्था के द्योतक हैं।
भारत में अलग-अलग ग्रामों की सीमायें निर्धारित होती है जिन्हें राजस्व ग्राम कहा जाता है। वर्तमान में प्रायः सभी कृषि प्रधान देशों में विभिन्न आकार-प्रकार के एकत्रित ग्रामीण अधिवास पाये जाते हैं।
एक राजस्व ग्राम के अन्तर्गत बसा हुआ क्षेत्र तथा संलग्न कृषि भूमि, बाग, बंजर भूमि, जलाशय आदि सम्मिलित होते हैं।
गृहों के बीच की दूरी तथा सघनता की प्रकृति के अनुसार एकत्रित ग्रामीण अधिवासों को सामान्यतः तीन वर्गों में रखा जाता है— सघन अधिवास, संयुक्त अधिवास तथा अपखंडित अधिवास।
एकल केन्द्रीय तथा सघन बसे ग्राम को संघन अधिवास कहा जाता है।
कई छोटे-छोटे पुरवो के समूह को संयुक्त अधिवास कहा जाता है।
संयुक्त अधिवास को पुरवा युक्त ग्राम भी कहा जाता है।
सघन अधिवास उन क्षेत्रों में विकसित होते हैं जहाँ अधिक जनसंख्या के रहने के लिए संसाधन उपलब्ध होते हैं।
सघन अधिवासों की उत्पत्ति के लिए विभिन्न प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक तत्व आधार प्रस्तुत करते हैं।
नदियों द्वारा निर्मित जलोढ़ मिट्टी वाले समतल मैदानी भागों में अधिकांशतः सघन ग्रामीण अधिवास पाये जाते हैं।
एशिया के कृषि प्रधान देशों तथा यूरोप के समतल मैदानी भागों में सघन अधिवासों की बहुलता पायी जाती है।
बाढ़ के मैदानों तथा डेल्टाई भागों में अपेक्षाकृत ऊँचे स्थलों पर सघन अधिवास बनाये जाते हैं। मिट्टी की उर्वरता का अधिवासों की प्रकृति पर अधिक प्रभाव पाया जाता है।
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